शुक्रवार, 7 जनवरी 2011

मुझे साथ में रखना---[शकील बुखारी'सहर']


मेरे मह्बूब मुझे साथ में रखना अपने
चाहे सहरा में रहो चाहे हसीं गुलशन में
मुझको दुनिया की नज़र ठीक नही लगती हॅ
भूखे शेरों की तरह मेरी तरफ़ उठ्ती हॅ
दिन भी होता यहां रात के मन्ज़र जैसा
बच्चों के हाथ में तिनका लगे खन्जर जैसा
भागती दोड्ती इन गाडियों को देखो तो
नीचे मुर्दा पड़ी सड़्को का कुछ ख्याल नही
अपने पैरों सै कितनी जाने मसल देती है
नीचे चलती हुई चीटीं का कुछ मलाल नही
चाँद के साये भी जब रात में उमड्ते है
लरज़ते होठं भी एकदम से चीख उठ्ते है
ऐसे माहोल मॅ ये दिल तो जी नही सकता
इसको तावीज़ बना लो या बांधो दामन में
मेरे मेह्बूब मुझे साथ में रखना अपने

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